Walled city of ahmedabad

Walled city of ahmedabad तीन दरवाजा का पूरा इतिहास

Walled city of ahmedabad तीन दरवाजा

Walled city of ahmedabad – आज मैंने अपने दिन की शुरुआत तीन दरवाजे से की है ये तीन दरवाजा मुझे काफी आकर्षित करता था क्योंकि दिन के समय दरवाजा काफी व्यस्त रहता है तो में सुबह के ७ बजे यहाँ पर आ गया हूँ मैंने पहली बार इस तीन दरवाजे बहुत करीब से देखा इस दरवाजे से मैं बहुत बार निकला था लेकिन कभी भी मुझे इस दरवाजे की विरासत महसूस नहीं हुई थी आज का दिन मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा और मैंने इस दरवाजे के इतिहास को समझा तो चलिए मैं आपको इस प्रसिद्ध तीन दरवाजे के बारे में बताने जा रहा हूं Walled city of ahmedabad

Walled city of ahmedabad 
Heritage sites in Ahmedabad

यह दरवाजा भद्रा किला के पूर्व में स्थित है तीन दरवाज़ा अहमद शाह के महल के विशाल मैदान में जाने के लिए प्रवेश द्वार है यहां से बादशाह की सवारी जाया करती थी इस प्रवेश द्वार मैं तीन द्वार हैं बीच का द्वार 17 फीट चौड़ा है और दूसरे दो द्वार 13 फीट चौड़े हैं इस दरवाजे में ऊपर जाने के लिए घुमावदार सीढ़ियां है

तीन दरवाजा का इतिहास Walled city of ahmedabad

तीन दरवाजा अहमद शाह १ ने १४१५ ईस्वी में बनवाया था इसका निर्माण अहमदाबाद के निर्माण के तुरंत बाद हुआ था  सन1459 में महमूद बेगड़ा अपने ३०० घोड़ों और 3000 सैनिकों के दल के साथ लड़ने के लिए इसी प्रवेश द्वार से निकला था उस समय रास्ते के दोनों ओर हाथियों  और शाही संगीत से उसका स्वागत किया गया था

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 मराठा सूबेदार चिमान जी रघुनाथ ने  1812 में यह फरमान जारी किया की अब से स्त्रियों को भी अपने पैतृक संपत्ति में पुरुष के समान अधिकार होगा और इस फरमान को तीन दरवाजा के ऊपर एक शिलालेख पर लिखवा दिया था उसने कहा कि यदि इस आदेश का पालन नहीं किया जाएगा तो हिंदुओं को भगवान महादेव और मुसलमान को अल्लाह या रसूल को उत्तर देना पड़ेगा

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तीन दरवाजा की लोक कथा

तीन दरवाजा के ऊपर कुछ लोग कथाएं भी प्रचलित है एक कथा के अनुसार धन की देवी लक्ष्मी शहर छोड़ने के लिए भद्रा किले के पास आई ओर तीन दरवाजे से बाहर जाने लगी तभी  द्वारपाल ख्वाजा सिद्धीक ने उसको रोक लिया और कहा जब तक अहमद शाह अनुमति नहीं देंगे तब तक आप यहां से बाहर ना जाए इसके बाद कोतवाल बादशाह के पास गया और कहां की लक्ष्मी को शहर में रोकने के लिए मुझे खुद का आत्मसमर्पण करना होगा

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जिससे कि शहर की संपत्ति यही पर सलामत रहे आज भी उस कोतवाल का मकबरा  वहीं पर स्थित है और महालक्ष्मी जी के रूप में मां काली का मंदिर विधबान  है कथा के अनुसार आज भी तीन दरवाजा की एक कोख में माता लक्ष्मी जी की ज्योत आज भी जलती है यह परंपरा 600 साल से एक मुस्लिम परिवार द्वारा चलाई जा रही है मैं यहां पर आकर यूनुस भाई से मिला था जो इस परंपरा को आज भी चला रहे हैं

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